Friday, April 27, 2012

क्या 'हम' तालिबान से कम हैं? (Talibanisation of India)

क्या 'हम' तालिबान से कम हैं?
Talibanisation of India 


 

कल फिर एक औरत को नंगा करके गांव में घुमाया गया। सजा के तौर पर। अपराध? कौन पूछता है! क्या फर्क पड़ता है! इतना कम है क्या कि वह औरत है। उसे नंगा किया जा सकता है। और इसकी सजा तो बड़ी होगी!

वहां भीड़ जमा होगी। किसी ने पूछा होगा, क्या सज़ा दें? कहीं से आवाज आई होगी, इनके कपड़े फाड़ डालो। वाह...सबके मन की बात कह दी। हां...हां फाड़ डालो। एक ढोल भी मंगाओ। नंगी औरतों के पीछे-पीछे अपनी मर्दानगी का ढिंढोरा पीटने के काम आएगा। सज़ा भी दी जाएगी और सबको बता भी दिया जाएगा कि हम कितने बड़े मर्द हैं।

' हम '... वही हैं, जो तालिबान को जी भरकर कोसते हैं। वे लड़कियों के स्कूल जलाते हैं, हम उन्हें नामर्द कहते हैं। वे कोड़े बरसाते हैं, हम उन्हें ज़ालिम कहते हैं। वे टीचर्स को भी पर्दों में रखते हैं, हम उन्हें जंगली कहते हैं। 'हम', जो हमारी संस्कृति और इज़्ज़त की रक्षा के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते हैं।

'हम'... जो अपनी बेटियों के मुंह से प्यार नाम का शब्द बर्दाश्त नहीं कर सकते। यह सुनते ही उबल उठते हैं कि जाट की लड़की दलित के लड़के के साथ भाग गई। उन्हें ढूंढते हैं, पेड़ों से बांधते हैं और जला डालते हैं... ताकि संस्कृति बची रहे। इस काम में लड़की का परिवार पूरी मदद करता है, क्योंकि उसके लिए इज़्ज़त बेटी से बड़ी नहीं। उसके बाद लड़के के परिवार को गांव से निकाल देते हैं।

'हम'... जो भन्ना उठते हैं, जब लड़कियों को छोटे-छोटे कपड़ों में पब और डिस्को जाते देखते हैं। फौरन एक सेना बनाते हैं... वीरों की सेना। सेना के वीर लड़कियों की जमकर पिटाई करते हैं और उनके कपड़े फाड़ डालते हैं। जिन्हें संस्कृति की परवाह नहीं, उनकी इज़्ज़त को तार-तार किया ही जाना चाहिए। उसके बाद हम ईश्वर की जय बोलकर सबको अपनी वीरता की कहानियां सुनाते हैं।

'हम'... जो इस बात पर कभी हैरान नहीं होते कि आज भी देश में लड़के और लड़कियों के अलग-अलग स्कूल-कॉलेज हैं। जहां लड़के-लड़की साथ पढ़ते हैं, वहां भी दोनों अलग-अलग पंक्तियों में बैठते हैं। क्यों? संस्कृति का सवाल है। दोनों साथ रहेंगे तो जाने क्या कर बैठेंगे।
‘हम'... जो रेप के लिए लड़की को ही कुसूरवार ठहराते हैं क्योंकि उसने तंग और भड़काऊ कपड़े पहने थे।

'हम'... जो अपनी गर्लफ्रेंड्स का mms बनाने और उसे सबको दिखाने में गौरव का अनुभव करते हैं और हर mms का पूरा लुत्फ लेते हैं।

'हम'... यह सब करने के बाद बड़ी शान से टीवी के सामने बैठकर तालिबान की हरकतों को 'घिनौना न्याय' बताकर कोसते हैं और अपनी संस्कृति को दुनिया में सबसे महान मानकर खुश होते हैं।

क्या 'हम' तालिबान से कम हैं?